स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय Swami Vivekananda Biography In Hindi

Swami Vivekananda Biography In Hindi-अपनी प्रतिभा और भारतीय संस्क्रती का वो सूरज जिन्हें हर भारतीय श्रध्दा और आदर्श की निगाह से देखते हैं ! वेदों और राष्ट्र के आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानन्द को दुनिया में सनातन घर्म का पर्याय माना जाता था|

स्वामी करपात्री जी महाराज की जीवनी

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को गौड़ मोहन मुखर्जी स्ट्रीट,कोलकाता में हुआ था .उस दिन हिन्दू कालदर्शक के अनुसार संवत् १९२० की मकर सक्रांति का दिन था . आज हम स्वामी जी के जन्मदिवस को केरियर डे के रूप में मनाते हैं ,स्वामी विवेकानन्द आज की युवा पीढ़ी के सच्चे मार्गदर्शक हैं उनके कार्यो और शिक्षाओ पर चलकर जीवन में हर असंभव सफलता के द्वार खोले जा सकते हैं ,
स्वामी विवेकानंद जी के बचपन का नाम नरेन्द्र था ,जो बचपन से ओजस्वी वाणी और ज्ञानवान थे स्वामी जी १८९३ के विश्व सर्व घर्म सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था.और अपने विचारो और सोच से पूरी दुनिया के गुरू कहलाये ||

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

एक कालीन परिवार में जन्मे नरेन्द्र घर्म और आद्यात्मिक की तरफ बचपन से ही उनका झुकाव था .स्वामी जी के गुरू श्री रामकृष्ण परमहंस थे .उनकी शिक्षाए और बातो से नरेन्द्र बहुत प्रभावित हुए ,विवेकानंद ने परमहंस से ही सिखा कि हर एक आत्मा में परमात्मा का वास होता हैं इसी सोच ने नरेन्द्र के नजरिये और सोच में बड़ा बदलाव आया

आज हमारे देश में स्वामी विवेकानंद को एक महान संत ,और राष्ट्र सुधारक समझे जाते हैं इसी कारण 12 जनवरी को उनके जन्मदिन को राष्ट्रिय युवा दिवस के रूप में मनाते हैं ||

स्वामी विवेकानन्द का बचपन

स्वामी जी के पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कलकत्ता हाई कोर्ट के जाने-माने वकील थे.और दादा दुर्गा चरण जी फारसी और संस्कर्त के ज्ञाता थे.माँ भुवनेश्वरी देवी स्वामी जी की माता जी का नाम था.

जो कि एक धार्मिक स्वभाव की महिला थी .उनका अधिकतर समय महादेव की पूजा में ही व्यतीत होता था .उनकी सोच और विचारो का बालक नरेन्द्र पर गहरा प्रभाव पड़ा बालपन में ही स्वामी जी तेज बुद्दी और ओजस्वी होने के साथ-साथ बड़े नटकट थे.वो अध्यापको और किसी का मजाक उड़ाने में पीछे नहीं हटते थे

.बचपन में ही उन्हें माता से धार्मिक पाठ और रामायण सुनना बहुत पसंद था उनके घर में हमेशा भजन कीर्तन हुआ करते थे.इस प्रकार के वातावरण में उनमे गहरी घार्मिक आस्था का जन्म हुआ और भगवान् को जानने का रहस्य उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना दिया जब भी उन्हें कोई ज्ञानी पंडित मिलते उन्हें ईश्वर के स्वरूप के बारे में जरुर पूछते .स्वामी विवेकानंद ने 25 वर्ष की उम्रः में ही घर छोड़ सन्यासी बन गये थे|

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा Education of Swami Vivekananda

मात्र आठ वर्ष की उम्रः में नरेन्द्र ने कलकता के प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान ईश्वर चंद्र विद्यासागर में दाखिला लिया .फिर उनका परिवार रायपुर आ बसा फिर से कलकता लोटे और प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढाई की और इस कॉलेज से फस्ट डिविजन से उत्तीर्ण करने वाले नरेन्द्र पहले छात्र थे |

नरेन्द्र बचपन से ही घार्मिक ,इतिहास ,समाज ,कला और साहित्य के किताबो और ग्रंथो को पढने में अधिक रूचि रखते थे.साथ ही रामायण,महाभारत और गीता व् वेदों को गहन अध्ययन किया करते थे.स्वामी जी ने बचपन में भारतीय शास्त्रीय सगीत की भी शिक्षा ली .और नित्य शारीरिक खेलो और व्यायामों में भाग लेते थे.इसके साथ ही नरेन्द्र ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज पिश्चमी सभ्यता और संस्कर्ती का गहन अध्ययन किया .नरेन्द्र ने वर्ष 1881 में ललित कला की परीक्षा पार की और वर्ष 1884 में कला वर्ग में स्नातक पास की ||

नरेन्द्र ने सभी वैज्ञानिकों और शिक्षा शास्त्रियों के ग्रंथो का अध्ययन किया जिनमे डेविड ह्यूम, इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोज़ा, जोर्ज डब्लू एच हेजेल, आर्थर स्कूपइन्हार , ऑगस्ट कॉम्टे, जॉन स्टुअर्ट मिल और चार्ल्स डार्विन की रचनाये शामिल थी .नरेन्द्र ने कई विदेशी भाषा की पुस्तको का हिन्दी और स्थानीय भाषा बंगाली में अनुवाद भी किया..

नरेन्द्र की कुशाग्र बुद्दी के बारे में हेस्टी नाम के प्रोफ़ेसर ने नरेन्द्र के बारे में कहा की -नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस है। मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है लेकिन उनकी जैसी प्रतिभा वाला का एक भी बालक कहीं नहीं देखा यहाँ तक की जर्मन विश्वविद्यालयों के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं||

ब्रह्म समाज

19 वि सदी के उतरार्द में कलकाता में इसाई मिशिनरिज का द्वोर था.और तेजी से घर्मातरण का काम चल रहा था.उसी समय रामकृष्ण जी के एक शिष्य केशव चंद्र सेन ने एक सगठन का निर्माण किया था स्वामीजी इस सगठन के सदस्य बने जो की ब्रह्म समाज का ही एक गुट था. इस हिन्दू सगठन का नेतृत्व केशव चंद्र सेन और देवेंद्रनाथ टैगोर ने किया था.जो शराब और घुम्रपान करने वाले युवाओ को इस कार्य से दूर रखने का सामाजिक कार्य करते थे||

स्वामी विवेकानंद की गुरू सेवा

एक समय एक शिष्य गुरूजी की सेवा के प्रति नफरत दिखाते हुए नाक-भौं सिकोड़ीं और मुह मोड़ा | इस पर नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद) को बहुत गुस्सा आया और अपने साथी को सबक सिखाते हुए विवेकानंद अपने बीमार गुरू की खून और कफ से भरी थूक दानी नित्य बाहर फेकते थे..अपने गुरू के प्रति सेवा और लग्न के कारण उनमे ऐसे आदर्शो का जन्म हुआ .स्वामीजी अपने सम्पूर्ण जीवन को अपने गुरू रामकर्षण परमहंस के चरणों में रख चुके थे,वो अपने घर-परिवार की चिंता की बगेर अपने गुरू के अंत समय तक निर्भाव से सेवा करते रहे||

स्वामी विवेकानंद सम्मलेन भाषण  Swami Vivekananda Speech in Hindi

मेरे अमरीकी भाइयो और बहनों

आपने जिस प्रेम और स्नेह के साथ हमारा का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्षित हो रहा हैं। दुनिया में संतो की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ

धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं(सनातन) की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।

मंच पर से बोलने वाले उन कतिपय अभीवक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय हमे बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ

जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत- दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस संसार के सभी धर्मों और राष्ट्रों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को सहारा दिया है। मुझे आपको यह बताते हुए गर्व अनुभव हो रहा हैं कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था।

ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव कर रहा हूँ जिसने महान जरथुष्ट जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है। भाईयो मैं आप लोगों को एक श्लोक की कुछ लाइने सुनाता हूँ जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति नित्य करोड़ो इन्सान करते हैं:

रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।।

जिस तरह अलग-अलग नदियाँ अलग-अलग जलस्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं इसी तरह हे प्रभो! अलग-अलग रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अर्थात सीधे रास्ते से जानेवाले लोग आखिर में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।

आज की सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं संसार के प्रति उसकी घोषणा करती है:

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।

यानि जो कोई भी मेरी तरफ आता है-चाहे किसी प्रकार के हो-मैं उसको प्राप्त होता हूँ। ये लोग अलग-2 रास्तो से कोशिश करते हुए आखिर में मेरी ही ओर आते हैं।

सभी धर्मो को समान रूप से मानना और हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मान्धता के कारण ही हमारी पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। और पृथ्वी को हिंसा से पोषित कर रही हैं और उसकोनिरंतर इंसानियत के रक्त से नहलाती रही हैं, अलग-अलग सभ्यताओं और संस्कर्ती को ध्वस्त करती हुई पूरे के सभी राष्ट्रों को हताशा और निराशाकी ओर घकेल देती हैं।

यदि ये वीभत्स दानवी शक्तियाँ न होतीं तो मानव समाज आज की हालात से और अधिक उन्नत हो गया होता।मगर अब वो समय आ गया हैं और मैं तहे दिल से उम्मीद करता हूँ कि आज की इस सभा के सम्मान में जो घण्टा ध्वनि हुई है

वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होने वाले मानवों की आपसी कटुता और द्वंद का मृत्यु निनाद सिद्ध हो।

शिकागो के इस भाषण का यह एक सक्षिप्त रूप हैं ,स्वामी विवेकानंद को इस धर्म महासभा में बोलने का समय नहीं दिया गया.अंत में भारत के प्रतिनिधि को 5 मिनट में अपनी बात रखने को कहा था.

इस पर स्वामीजी ने भगवा धारी मंच पर आये प्यारे अमेरिकी भाइयो और बहिनों से अपना भाषण शुरू करते ही तालियों की गडगडाहट से पूरा परिसर गुज उठा था. स्वामी विवेकानंद की भाषा कुछ इस तरह थी की कहा पांच मिनट 6 -7 घंटे तक स्वामी जी बोलते गये और किसी को घड़ी देखने की फुरसत ही नहीं रही लोग घिसकते2 कई किलीमीटर पीछे चले गये यह उनकी वाणी का अद्भुत प्रभाव था.|

स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाए Swami Vivekananda Education In Hindi

१. हमारे शिक्षा का सवरूप ऐसा हो जिसमे बालक का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास निहित हो

२. हमारी विद्यालयी शिक्षा इस तरह की हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण किया जा सके उनके मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भन बने

३. प्रारम्भिक शिक्षा का ढाचा इस प्रकार का हो जिसमे बालक-बालिकाओ को बिना भेदभाव समग्र रूप से शिक्षा प्रदान की जाये
४. शिक्षा के पाठ्यक्रम में धार्मिक शिक्षा दी जाये मगर शिक्षा का आधार पुस्तके न होकर व्यवाहरिक शिक्षा दी जाये जो आचरण आधारित हो |

५. शिक्षा पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक विषयों को पर्याप्त स्थान देना चाहिए।

६. सही शिक्षा, गुरूकुल में ही दी जा सकती है।

७. गुरू शिष्य के सम्बन्ध के बिच ज्यादा दुरी नहीं रहनी चाहिए

८. आमजन में शिक्षा का प्रचार किया जाना चाहिए और शिक्षा के प्रति समाज में जागरूकता पैदा करनी चाहिए
९. देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पाठ्क्रम में तकनिकी शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए
१०.बच्चे को संस्कारी और ज्ञान की शिक्षा की शुरुआत घर से की जानी चाहिए

स्वामी विवेकानंद से जुडी घटनाए और तिथियों

  • जन्म-12 जनवरी 1863,कलकत्ता में
  • प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में दाखिला -1879
  • जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में दाखिला -1880
  • रामकृष्ण परमहंस से पहली मुलाकात -नवंबर 1881
  • गुरू रामकृष्ण परमहंस से जान-पहचान -1882-86
  • स्नातक पास और पिताजी का देहांत -1884
  • रामकृष्ण परमहंस का बीमार पड़ना -1885
  • गुरू रामकृष्ण परमहंस का देहांत -16 अगस्त 1886
  • वराहनगर मठ की स्थापना-सन 1886
  • वराह नगर मठ में संन्यास प्रतिज्ञा -जनवरी 1887
  • सम्पूर्ण भारत-भ्रमण-1890-93
  • कन्याकुमारी में -25 दिसम्बर 1892
  • पहला सार्वजनिक भाषण सिकन्दराबाद-13 फ़रवरी 1893
  • मुम्बई से अमरीका रवाना-31 मई 1893
  • वैंकूवर से कनाडा पहुँचे-25 जुलाई 1893
  • शिकागो जाना-30 जुलाई 1893
  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो॰ जॉन राइट से मुलाकात -अगस्त 1893
  • विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में पहला भाषण -11 सितम्बर 1893
  • विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अंतिम भाषण -27 सितम्बर 1893
  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय भाषण -16 मई 1894
  • अमेरिका के न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना-नवंबर 1894
  • न्यूयॉर्क में ही धार्मिक कक्षाओं का संचालन-जनवरी 1895
  • पेरिस यात्रा -अगस्त 1895
  • लन्दन में सार्वजनिक भाषण-अक्टूबर 1895
  • न्यूयॉर्क लोटे-6 दिसम्बर 1895
  • लन्दन की दूसरी यात्रा- मार्च 1896
  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय में दूसरा भाषण -जुलाई 1896
  • लन्दन की तीसरी यात्रा -15 अप्रैल 1896
  • लंदन में सनातन धार्मिक कक्षाएँ-जुलाई 1896
  • मैक्समूलर से मुलाकात -28 मई 1896
  • नेपाल की यात्रा से भारत आना -30 दिसम्बर 1896
  • कोलम्बो यात्रा-15 जनवरी 1897
  • रामेश्वरम आगमन और भाषण -जनवरी, 1897
  • रामकृष्ण मिशन की ओपचारिक स्थापना-1 मई 1897
  • सम्पुरण उत्तर भारत की यात्रा-दिसम्बर 1897
  • अद्वैत आश्रम की स्थापना-19 मार्च 1899
  • पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा-20 जून 1899
  • सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की स्थापना-22 फ़रवरी 1900
  • योरोप यात्रा -26 जुलाई 1900
  • विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र इन देशो की यात्रा-24 अक्टूबर 1900
  • बेलूर मठ आगमन-9 दिसम्बर 1900
  • बंगाल और असम की तीर्थयात्रा-मई 1901
  • बोध गया और वाराणसी की तीर्थ यात्रा -फरवरी 1902
  • महासमाधि-4 जुलाई 1902
  • स्वामी विवेकानंद से जुडी घटनाए और तिथियों

विवेकानंद की रामकृष्ण परमहंस से भेंट

जब विवेकानंद परमहंस से मिले तब उनकी आयु पच्चीस वर्ष थी.उस समय का मिलन दोनों की सोच और नजरिया अलग था ,और यही स्वामी विवेकानंद जी के जीवन का निर्णायक मोड़ था परमहंस के धार्मिक और आध्यात्मिक विचारो का स्वामी विवेकानंद पर गहरा असर पड़ा

स्वामी विवेकानंद उस समय एक रहस्यमयी सवाल का जवाब जानने की कोशिश में थे .कि ईश्वर को किसने देखा ,जब स्वामी जी परमहंस से मिले तो पहला सवाल यही किया कि आपने ईश्वर को देखा हैं क्या ?

इस पर रामकृष्ण परमहंस का अप्रत्याशित जवाब था ,हां देखा हैं और नित्य देखता हु.जब रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद को छुआ तो एक तगड़ा सा झटका महसूस किया ,और बालक नरेन्द्र की आंतरिक आत्मा जाग उठी .और उनका रामकृष्ण परमहंस के प्रति दिनोंदिन लगाव बढ़ता रहा .और अपना जीवन उनके चरणों में समर्पित कर खुद को उनका शिष्य मान लिया|

स्वामी विवेकानंद 1902 को 39 वर्ष की उम में ही स्वर्गवासी हो गये

Swami Vivekananda Quotes in Hindi स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार

  • “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।” उठो, जागो, और लक्ष्य की प्राप्ति तक रूको मत
  • मैं सिर्फ और सिर्फ प्रेम की शिक्षा देता हूं और मेरी सारी शिक्षा वेदों के उन महान सत्यों पर आधारित है जो हमें समानता और आत्मा की सर्वत्रता का ज्ञान देती है
  • सफलता के तीन आवश्यक अंग हैं-शुद्धता,धैर्य और दृढ़ता। लेकिन, इन सबसे बढ़कर जो आवश्यक है वह है प्रेम
  • खड़े हो जाओ, हिम्मतवान बनो, ताकतवर बन जाओ, सब जवाबदारिया अपने सिर पर ओढ़ लो, और समझो की अपने नसीब के रचियता आप खुद हो।
  • जिंदगी बहुत छोटी है, दुनिया में किसी भी चीज़ का घमंड अस्थाई है पर जीवन केवल वही जी रहा है जो दुसरो के लिए जी रहा है, बाकि सभी जीवित से अधिक मृत है।
    डर और अपूर्ण इच्छाएं ही मनुष्य के समस्त दुःखो का मूल कारण है।
  • शिक्षा एसी हो जिससे चरित्र निर्माण हो। मानसिक शक्ति का विकास हो। ज्ञान का विस्तार हो और जिससे हम खुद के पैरों पर खड़े होने में सक्षम बन जाएं
  • खुद को समझाएं, दूसरों को समझाएं। सोई हुई आत्मा को आवाज दें और देखें कि यह कैसे जागृत होती है। सोई हुई आत्मा के का जागृत होने पर ताकत, उन्नति, अच्छाई, सब कुछ आ जाएगा।
  • यह कभी न सोचे कि आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है संसार में सब-कुछ संभव हैं
  • इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है क्योंकि सफलता का आनंद उठाने के लिए ये जरूरी है
    डर निर्बलता की निशानी है।
  • मेरे आदर्श को सिर्फ इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता हैः मानव जाति देवत्व की सीख का इस्तेमाल अपने जीवन में हर कदम पर करे
  • यदि आप फ़ुटबाल की बजाय गीता का अध्ययन करते हैं तो स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे
  • स्वामीजी के उपदेशों का सूत्रवाक्य, “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत” कठोपनिषद् हैं
  • विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते है, क्योंकि उनमे समय पर साहस का संचार नही हो पाता। वे भयभीत हो उठते है।
  • एक विचार को अपनाओ और उस विचार को अपना जीवन बना लो और उसी के बारे में सोचो उसी के सपने देखो , उस विचार को जीयो अपने दिमाग , मांसपेशियों , नसों , शरीर के हर हिस्से को
  • उस विचार में पूर्ण रूप से डूब जाने दो और बाकी सभी विचार को एक तरफ रख रख दो जिन्दगी सफल होने का यही तरीका है
  • शक्ति की वजह से ही हम जीवन में ज्यादा पाने की चेष्टा करते हैं। इसी की वजह से हम पाप कर बैठते हैं और दुख को आमंत्रित करते हैं। पाप और दुख का कारण कमजोरी होता है। कमजोरी से अज्ञानता आती है और अज्ञानता से दुख।
  • अगर आपको तैतीस करोड़ देवी-देवताओं पर भरोसा है लेकिन खुद पर नहीं तो आप को मुक्ति नहीं मिल सकती। खुद पर भरोसा रखें, अडिग रहें और मजबूत बनें। हमें इसकी ही जरूरत है।
  • दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, ना कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है
  • अपना कर्तव्य है कि हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें
  • एक नायक बनो, और सदैव कहो – “मुझे कोई डर नहीं है
  • स्वयं में बहुत सी कमियों के बावजूद अगर में स्वयं से प्रेम कर सकता हुँ तो दुसरो में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृणा कैसे कर सकता हुँ।
    डर ही पतन और पाप का मुख्य कारण है।
  • रामकृष्ण कहा करते थे ,” जब तक मैं जीवित हूँ , तब तक मैं सीखता हूँ ”. वह व्यक्ति या वह समाज जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है वह पहले से ही मौत के जबड़े में है।
    इन्सान की सेवा करो। भगवान की सेवा करो
  • कुछ मत पूछो , बदले में कुछ मत मांगो ,जो देना है वो दो ; वो तुम तक वापस आएगा , पर उसके बारे में अभी मत सोचो
  • सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव के प्रति सच्चे होना। स्वयं पर विश्वास करो
  • स्वतंत्र होने का साहस करो। जहाँ तक तुम्हारे विचार जाते हैं वहां तक जाने का साहस करो , और उन्हें अपने जीवन में उतारने का साहस करो
  • भगवान को खोजने कहाँ जा सकते हैं उसे अपने ह्रदय और हर एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते
  • स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
  • एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो
  • सत्य को लाखो तरीकों से बताया जा सकता हैपरन्तु फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
  • जिस प्रकार अलग -अलग स्रोतों से उत्पन्न जल धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं ,उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना प्रत्येक रास्ता , चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता हैं

अंतिम शब्द –

उठो, जागो, और लक्ष्य की प्राप्ति तक रूको मत,स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography In Hindi  आज के इस लेख में हमने आपके श्रदेय श्री स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के बारे आपको पूरी जानकारी देने की कोशिश की हैं ,यदि आपके पास स्वामी विवेकानंद जी या किसी अन्य व्यक्तितव की जानकारी आपके पास हैं तो कमेंट कर हमारे साथ शेयर कर सकते हैं जिसे आपके नाम के साथ इस ब्लॉग पर पब्लिश की जाएगी .. ये लेख आपको कैसा लगा कमेंट कर जरुर बताये .. साथ की किसी तरह भाषागत ,तथ्य  से सम्बन्धित त्रुटी के लिए क्षमाप्रार्थी हैं ,

टिप्पणी करे